हर खुशियाँ परायी हो गयी ,
इस आसियाने चमन में |
कोई आरजू ना बची जीने की ,
इस बेजान धड़कन में || 1 ||
हर पग पर मंजिले आँखे चुराने लगी ,
इस टूटती शरीर की साँसों से |
तनहाईयाँ भी दामन छुडाने लगी ,
इस लुटी जिन्दगी में || 2 ||
हर रिश्ते दूर जाने लगे ,
इस टूटते जिन्दगी से |
हर चाहत की कब्र बन गयी ,
इस डूबते धड़कन में || 3 ||
दुनियाँ के सितारे धुँधले हो गए ,
इन कम होती आँखों की रौशनी में |
इक जलता दीप बुझने लगा ,
इस पापी शरीर में || 4 ||
हर घरौंदा दफ्न हो गया ,
इस मिट्टी की कब्र में |
मेरी हर कलम रो पड़ी ,
इस मृत्यु की कहानी बया करने में || 5 ||
सपन कुमार सिंह , 30/03/2007 , शुक्रवार